Tuesday, 24 July 2018

๐Ÿ™๐Ÿป๐ŸŒท *เค•เคฐ्เฅ› เคตाเคฒी เคฒเค•्เคท्เคฎी* ๐ŸŒท๐Ÿ™

🙏🏻🌷 *कर्ज़ वाली लक्ष्मी* 🌷🙏

✍🏻  छोटा 15 वर्षाचा श्रीधर आपल्या वडिलांना म्हणाला बाबा ताईचे भावी सासरे आणि सासू उद्या येत आहेत असा जीजूंचा फोन आला आहे. ताई म्हणजे त्याची मोठी बहीण,तीचे काही दिवसांपूर्वी एका चांगल्या घरात लग्न ठरले होते.
माधवराव  अगोदरच उदास बसले होते ते हळूच म्हणाले
होयरे श्रीधर त्यांचा कालच फोन आला होता की देण्याघेण्याची बोलणी करण्यासाठी आम्ही दोन दिवसात येतो,त्याची आपसात अगोदरच बोलणी होणे आवश्यक आहे मोठ्या मुश्किलीने चांगला मुलगा चांगले घर मिळत होते पण जर त्यांची हुंडा तोळेगोळे यांची मागणी माझ्या आवाक्याच्या बाहेर असेल तर कसे होणार आणि चांगले स्थळ हातचे जाणार हे म्हणताना त्यांच्या डोळ्यात टचकन पाणी आले.ते पाहून व त्यांचे बोलणे ऐकून घरातल्या  प्रत्येक सदस्याच्या मन व चेहर्‍यावर चिंता साफ दिसत होती
शेवटी दुसऱ्या दिवशी ठरल्याप्रमाणे होणारे व्याही, विहिणबाई दोघेही आले त्यांची अगदी व्यवस्थित खातीरदारी केली गेली काही वेळाने व्याही म्हणाले माधवराव आता महत्त्वाचे बोलू ते ऐकताच माधवराव यांच्या छातीत धडधड लागले तरीही ते कसेबसे म्हणाले हो हो आपण जसे म्हणाल तसे,
व्याह्यांनी आपली खुर्ची हळूच माधवरावांच्या जवळ सरकवली व ते हळूच त्यांच्या कानात म्हणाले.
माधवरावा मला हुंड्याविषयी बोलायचे आहे

माधवराव दोन्ही हात जोडून भरल्या डोळ्यांनी म्हणाले बोला तुमच्या मनात जे असेल ते, तुम्हाला योग्य वाटते ते, मी माझ्या परीने सर्वतोपरी प्रयत्न करीन.
व्याह्यांनी त्यांचा हात आपल्या हातात घेऊन हलकेच दाबत ते फक्त एवढेच म्हणाले
तुम्ही कन्यादानात काही द्या अथवा देवूही नका,थोडे द्या अथवा जास्त द्या. परंतु कर्ज़ काढून आपण एक रुपया सुध्दा आम्हाला हुंड्यात देवू नका. ते मला मान्य नाही कारण जी मुलगी बापाला कर्जात बुडवले अशी कर्जवाली लक्ष्मी" मला मान्य नाही मला बिगर कर्जाची  सुन हवी आहे.
जी माझ्या घरात येवून माझी सम्पति कित्येक पटीने वृध्दिंगत करील. 👍🏻🙏🏻🙏🏻
माधवराव एकदम अचंबित झाले व व्याह्यांच्या गळ्यात मिठी मारून म्हणाले.
*सोय जाणेल तोच सोयरा* तुम्ही म्हणाल तसेच होईल. 👍🏻👍🏻🙏🏻
*-* कर्ज वाली लक्ष्मी कुणीही बोळवण करु नका आणि आपल्या घरात सुध्दा आणू नका मग पहा घराची सुख समृद्धी भरभराट कशी वाढत वाढत जाते .......

            *विचार अवश्य करा...* 🤔

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Monday, 23 July 2018

☝๐Ÿป *เคถ्เคฐीเค•ृเคท्เคฃ เค•เคนเคคे เคนैं* :-☝๐Ÿป

☝๐Ÿป *เคถ्เคฐीเค•ृเคท्เคฃ เค•เคนเคคे เคนैं*  :-☝๐Ÿป

*เคธ्เคตเคฐ्เค—  เค•ा  เคธเคชเคจा  เค›ोเฅœ  เคฆो*,
     *เคจเคฐ्เค•   เค•ा   เคกเคฐ   เค›ोเฅœ   เคฆो* ,
      *เค•ौเคจ   เคœाเคจे   เค•्เคฏा   เคชाเคช ,*
              *เค•्เคฏा   เคชुเคฃ्เคฏ* ,
                   *เคฌเคธ............*
    *เค•िเคธी   เค•ा   เคฆिเคฒ   เคจ   เคฆुเค–े*
      *เค…เคชเคจे   เคธ्เคตाเคฐ्เคฅ   เค•े   เคฒिเค* ,
                   *เคฌाเค•ी   เคธเคฌ* ......
          *เค•ुเคฆเคฐเคค   เคชเคฐ   เค›ोเฅœ   เคฆो*
*เคจा เคชैเคธा  เคฌเฅœा.. เคจा เคชเคฆ เคฌเฅœा ।*
*เคฎुเคธीเคฌเคค เคฎें เคœो เคธाเคฅ เค–เฅœा...*
*เคตो เคธเคฌเคธे เคฌเฅœा ।।
          ๐ŸŒน *๐Ÿ™๐Ÿ™*๐ŸŒน
       *๐Ÿ™๐Ÿปเคœเคฏ เคถ्เคฐी เค•ृเคท्เคฃा๐Ÿ™๐Ÿป*

Monday, 2 July 2018

*"เคฎเค•ाเคจ เคธाเคฐे เค•เคš्เคšे เคฅे" เคนเคฐिเคตंเคถ เคฐाเคฏ เคฌเคš्เคšเคจ* ฺฏู‡ุฑ ุณฺ€ ฺชฺ†ุง ู‡ุฆุง  ----- ู‡ุฑูŠูˆู†ุด ุฑุงุกِ ุจฺ†ู†

*"मकान सारे कच्चे थे" हरिवंश राय बच्चन*
گهر سڀ ڪچا هئا  ----- هريونش راءِ بچن

मकान चाहे कच्चे थे
लेकिन रिश्ते सारे सच्चे थे…
شايد گهر سڀ ڪچا هئا
پر رشتا سڀ سچا هئا
चारपाई पर बैठते थे
पास पास रहते थे…
کٽ تي وِهندا هُئاسين
ويجهو ويجهو رهندا هئاسين
सोफे और डबल बेड आ गए
दूरियां हमारी बढा गए….
جڏھن سوفا ۽ ڊبل بيڊ اچي ويا
وڇوٽيون اسان جون وڌنڌيون ويون
छतों पर अब न सोते हैं
कहानी किस्से अब न होते हैं..
اڄ ڇتين تي نٿا سمهون
ڪهاڻيون ڪِسا بہ نٿا چئون
आंगन में वृक्ष थे
सांझा करते सुख दुख थे…
اڱر ٻاهر وڻ هوندا هئا
سک دک ونڊيا ويندا هئا
दरवाजा खुला रहता था
राही भी आ बैठता था…
دروازا کُلا رهندا هئا
ايندڙ ويندڙ بہ اندر اچي وهندا هئا
कौवे भी कांवते थे
मेहमान आते जाते थे…
ڪانوَ ڪان ڪان ڪندا هئا
مهمان ايندا ويندا هئا …
इक साइकिल ही पास थी
फिर भी मेल जोल की आस थी …
سائيڪل هڪ ئي هوندي هئي
پوءِ بہ ميل ميلاپ جي آس رهندي هئي …
रिश्ते निभाते थे
रूठते मनाते थे…
رشتا نباهيندا هئاسين
رٺل کي منائيندا هئاسين …
पैसा चाहे कम था
माथे पे ना गम था…
پوءِ ناڻو بلاشڪ گهٽ ھو
پر مٿي تي ڪو گم نہ هو
मकान चाहे कच्चे थे
रिश्ते सारे सच्चे थे…
گهر بلاشڪ ڪچا هئا
پر رشتا سڀ سچا هئا …
अब शायद कुछ पा लिया है
पर लगता है कि बहुत कुछ गंवा दिया है...
شايد هاڻ گهڻو ڪجهہ ڪمايو آ
پر لڳي ٿو گهڻو ڪجهہ وڃايو آ …
जीवन की भाग-दौड़ में –
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
جيون جي ڍُڪ ڊوڙ ۾ -
ڇو وقت ساڻ رنگيني گم ٿيندي آهي؟
کلندڙ ٽپندڙ زندگي عام ٿي ويندي آهي ؟
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम
और आज कई बार
बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है!!
هڪ صبح ھو جڏھن کلندا اُٿندا هئاسين
۽ اڄ ڪيتريون شام ويلون
بنا مسڪرائيندي گذري وينديون آهن !!
कितने दूर निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते...
ڪيترو تہ پري لنگهي آيا آهيون
رشتن کي نباهيندي نباهيندي …
खुद को खो दिया हमने,
अपनों को पाते पाते...
پنهنجي ”پاڻُ “ کي وڃائي ڇڏيو آ
پنهنجن کي پائيندي پائيندي …
मकान चाहे कच्चे थे...
रिश्ते सारे सच्चे थे…
گهر بلاشڪ ڪچا هئا …
پر رشتا سڀ سچا هئا …